भाषाई सौहार्द को सुदृढ़ करेगा 'भारतीय भाषा दिवस' का आयोजन

वर्तमान में भारत के शिक्षा क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को‌ प्रोत्साहन दिए जाने के लिए निरंतर प्रयास हो रहे हैं। भारत का भाषाई परिदृश्य विश्व में सबसे अनूठा है। जहां एक ओर विश्व में भाषाई आधार पर राष्ट्र विभाजन के कई उदाहरण हैं जैसे यूरोप के देशों का उदाहरण या पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलग होने के प्रमुख कारणों में से एक, वहीं दूसरी तरफ भारत में भाषाई विविधता से एकता के सूत्र मिलते हैं, विभिन्न भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य में भारतीय संस्कृति के समन्वयकारी सूत्र प्राप्त होते हैं। वर्तमान समय में जब 'नए भारत' और 'आत्मनिर्भरता' के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हों, तब भाषाई दृष्टि से भी आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित हिंदी दिवस - 2021 समारोह में कहा भी कि 'आत्मनिर्भर शब्द सिर्फ उत्पादन, वाणिज्यिक संस्थाओं के लिए नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भर शब्द भाषाओं के बारे में भी होता है और तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा। अगर भाषाओं के बारे में हम आत्मनिर्भर ना बनें, तो आत्मनिर्भर भारत के कोई मायने नहीं हैं।'

 

आज 11 दिसंबर को देश भर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में 'भारतीय भाषा दिवस' का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन का दिन आधुनिक तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती की जन्म जयंती के दिन पर निर्धारित किया गया है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनकी ओजस्वी कविताओं ने तमिलनाडु सहित देशभर में राष्ट्रवाद की भावना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुब्रमण्यम भारती का स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान का एक प्रसिद्ध कथन है, "भले ही भारतीय विभाजित हों, लेकिन वे एक माँ की संतान हैं, विदेशियों को हस्तक्षेप करने की क्या आवश्यकता है?" 'भारतीय भाषा दिवस' के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के जो‌ प्रयास हो रहे हैं वह सुब्रमण्यम भारती जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी तथा साहित्यिक प्रतिभा को‌ सच्ची श्रद्धांजलि है। 'महाकवि भारथियर' नाम से भी प्रसिद्ध सुब्रमण्यम भारती ने तमिल कविता को आधुनिक भावबोध तथा सरल रचनाशैली की ओर मोड़ा।

 

देश के कुछ हिस्सों से नियमित अंतरालों पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों तथा असामाजिक तत्वों द्वारा भाषाई तथा सांस्कृतिक आधार पर अस्थिरता पैदा‌ करने के असफल प्रयासों की गूंज सुनाई देती है, लेकिन इस सबके बीच भारत के समझदार नागरिक निरंतर 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की मजबूत भावना के साथ गतिशील हैं। 'आजादी के अमृत महोत्सव' के अंतर्गत 'काशी तमिल संगमम्' जैसे सराहनीय प्रयास भी जारी हैं जिनके द्वारा भाषाई, सांस्कृतिक तथा सामाजिक संबंधों को नए रूप में परिभाषित करने तथा भारतीय युवाओं को भारतीय संस्कृति तथा लोकाचार में आस्थावान हो भारतीय ज्ञान प्रणाली को आधुनिक ‌स्वर देने की दिशा दिखाई जा रही है।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में भारतीय भाषाओं की समृद्ध विरासत को महत्वपूर्ण ढंग से रेखांकित किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में स्पष्ट तौर से रेखांकित किया गया है कि 'सभी भाषाओं को सभी छात्रों को उच्चतर गुणवत्ता के साथ पढ़ाया जाएगा; एक भाषा को अच्छी तरह से सिखाने और सीखने के लिए इसे शिक्षा का माध्यम होने की आवश्यकता नहीं है।' राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के 'भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संवर्धन' बिंदु के अंतर्गत स्पष्टतया रेखांकित किया गया है- 'भाषा, निःसंदेह, कला और संस्कृति से अटूट रूप से जुड़ी हुई है।....संस्कृति हमारी भाषाओं में समाहित है। साहित्य, नाटक, संगीत, फिल्म आदि के रूप में कला की पूरी तरह सराहना करना बिना भाषा के संभव नहीं है। संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए, हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा।' निश्चित ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020‌ में भारतीय भाषाओं के संवर्धन का महत्वपूर्ण खाका खींचा गया है।

 

भारत की बहुभाषिकता देश के लिए समस्या नहीं है बल्कि राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का उपकरण है।भाषा विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले विद्वान रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के अनुसार,'भारतवर्ष में बहुभाषिकता किसी समस्या के रूप में नहीं रही। यहां की संचार व्यवस्था समाज की अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप जिस प्रकृति में ढलती गई उसमें बहुभाषिक स्थिति सहज और प्राकृतिक लक्षण के रूप में उभरी।' जब तकनीक ही विश्वभाषा बनने की ओर बढ़ रही हो तब भाषा का विकास एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए अलग-अलग स्तरों पर प्रयास हो रहे हैं। इन्हीं प्रयासों के बीच 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की भावना के साथ 'भारतीय भाषा दिवस' का आयोजन छात्रों के बीच भारतीय भाषाओं के प्रति जागरूकता का प्रसार करेगा। आज के दिन देशभर के लगभग 1 लाख उच्च शिक्षण संस्थानों, महाविद्यालयों तथा स्कूलों में विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों द्वारा कम से कम 1 करोड़ छात्रों की भागीदारी सुनिश्चित करने की योजना है। इतने बड़े स्तर पर भारतीय भाषाओं का यह उत्सव संभवतः अपनी तरह का, अब तक का सबसे बड़ा आयोजन है।

 

भारतीय भाषाओं के प्रति कहीं न कहीं जो हीनता बोध की स्थिति उत्पन्न हो रही थी, वह भी दूर करने के प्रयास जारी हैं। तकनीक के स्तर पर विभिन्न ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी भारतीय भाषाएं निरंतर प्रगति कर रही हैं। साथ ही उच्च शिक्षा क्षेत्र में तकनीक, मेडिकल आदि की पाठ्य पुस्तकें भारतीय भाषाओं में प्रकाशित करा भाषाई आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से कदम बढ़ रहे हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश में मेडिकल शिक्षा हिंदी में शुरू हुई,इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट के माध्यम से कहा,"मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में हुआ यह शुभारंभ देश में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव लाने वाला है। इससे लाखों विद्यार्थी, जहां अपनी भाषा में पढ़ाई कर सकेंगे, वहीं उनके लिए अवसरों के अनेक द्वार भी खुलेंगे।”

 

निष्कर्षत: यह स्पष्ट है कि देश में भारतीय भाषाओं को‌ नवाचारों से जोड़ने के प्रयास निश्चित ही फलीभूत होते दिख रहे हैं। सरकार के स्तर पर तो प्रयास हो ही रहे हैं, साथ ही निजी क्षेत्र में भी स्थानीय भाषाओं का रुतबा बढ़ रहा है। आज जब पूरा देश 'भारतीय भाषा दिवस' को मना रहा है तब निश्चित ही हमें भाषाई आत्मनिर्भरता तथा भाषाई सौहार्द सुदृढ़ होने की सकारात्मक राह दिखती है। 'भारतीय भाषा दिवस' का आयोजन युवाओं को भाषाई विविधता के माध्यम से भारतीय संस्कृति की विविधता को समझने का‌ अवसर देगा साथ ही भाषाई आधार पर मतभेद उत्पन्न करने ‌वालों को भी ऐसा न कर, देश की भाषाई विविधता पर सकारात्मक ढंग से सोचने का मार्ग दिखाएगा।

 

(यह लेख श्री आशुतोष सिंह, अनुसंधान विद्वान, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा जनवरी 2023 को लिखा गया है)

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